यात्रा शिक्षा का एक साधन है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य चरित्र-निर्माण है। जब हम यात्रा करते हैं, हमें अपनी चीजें सँभालनी पड़ती हैं, अपना टिकट खरीदना पड़ता हैं और ठीक समय पर गाड़ी पकड़नी पड़ती है। यात्रा में हमें अपनी मदद आप करनी पड़ती है। यदि हमें अपरिचित लोगों से मिलने-जुलने की कला नहीं मालूम हो तो सफर में हमें बहुत तकलीफ उठानी पड़ेगी। भिन्न-भिन्न स्थानों को देखने और सभी तरह के लोगों से बातें करने से हम बहुतेरी नई चीजें सीखते हैं। यूरोप में यात्रा के बिना शिक्षा अधूरी समझी जाती है। प्राचीन भारत में भी तीर्थयात्रा को बड़ा महत्व दिया जाता था। अनेक नदियों और पहाड़ों के इस देश में भ्रमण बड़ा आनंदमय हो सकता है।
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