अपनी मातृभाषा को निकृष्ट समझना हमारी भूल है। हमें संसार के साथ रहना और चलना है। अतएव संसार की अन्यान्य भाषाओं के सीखने की जरूरत है। पर, अपनी मातृभाषा के महत्व का ख्याल रखना भी बहुत जरूरी है। हम अंग्रेजी भाषा और साहित्य के विद्वान हो सकते हैं, पर शेक्सपीयर या मिल्टन कदापि नहीं हो सकते। एक अंग्रेज हिन्दी भाषा और साहित्य का विद्वान हो सकता है, पर वह सूर या तुलसी कभी नहीं हो सकता। अच्छी किताबें हम अपनी मातृभाषा में ही लिख सकते हैं। हमारे स्कूलों में भी अब भारतीय भाषाओं पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। अपनी मातृभाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त करना हमारा कर्तव्य है।
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